समंदर बर तरफ़ सहरा बहुत है
जहां तक नक्श हो दरिया बहुत है
फ़सीले शब् पे सन्नाटा बहुत है
लरज़ जाए कोई साया, बहुत है
दरीचे खिड़कियाँ सब बंद कर लो
बस इक अन्दर का दरवाज़ा बहुत है
शबीहें नाचती हैं पानियों पर
मुसल्लत झील पर कोहरा बहुत है
कड़कती धूप में छत पर न जाओ
झुलस जाने का अंदेशा बहुत है
खुला बन्दे -कबा उसका तो जाना
बदन कुछ भी नही चेहरा बहुत है
मेरी तकमील को तलअत जहां में
वो इक टूटा हुआ रिश्ता बहुत है