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समझौता भाता नहीं / रमा द्विवेदी



जब किसी से जुड़ता है दिल मेरा,
दिल दीवानगी को पार कर जाता है।
और जब टूटता है दिल मेरा,
दिल दुख की दीवानगी में डूब जाता है।

क्या करें इस दिल का,
समझौता इसे भाता नहीं।
और दिल की उन गहराईयों तक,
समझने के लिए कोई आता नहीं।

इस दुनिया में दिल की बात करना,
खुद को भरमाना है।
क्या करें वे जिन्हें कुछ न मिले,
इसे भ्रम से ही बहलाना है।

प्रेम की स्वार्थलोलुपता देख,
मेरा दिल दहल जाता है।
पर जिन्हें कुछ नहीं मिलता,
उनका दिल जैसा भी हो, बहल जाता है।

दिल का जुड़ना तो एक क्षण में पूर्ण होता है,
जहाँ सब कुछ लुटा देने की भावना का प्रवाह होता है।
निकटता साथ-साथ रहने से नहीं होती है,
वह तो सिर्फ़ थोपा हुआ एक लोकाचार होता है।