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समन्दर ! तुम चित्रकार हो / मुन्नी गुप्ता

समन्दर ! तुम चित्रकार हो —
चिड़िया के चित्रकार
जीवन के चित्रकार

तुमने ही भरा — रंगों से हर पल मुझे
तुम्हारे दिए रंगों को हर पल
जीआ है मैंने

रंगों में जाना है तुम्हें
उसी में अपने होने का पहला पाठ
पाया है मैंने

अपना अक्स देखती हूँ — तुम में
और तुम में ही देखती हूँ — विस्तार

समन्दर ! तुम चित्रकार हो
चिड़िया के चित्रकार
जीवन के चित्रकार

तुमने दिया — एक समन्दर मुझे प्रेम का
तुमने ही दिया — एक समन्दर मुझे आसमाँ का
तुमने ही दिया — एक समन्दर मुझे जीवन का
तुमने ही दिया — एक समन्दर मुझे अहसास का
तुमने ही दिया — एक समन्दर मुझे ख़ूबसूरती का

समन्दर तुम चित्रकार हो
चिड़िया के चित्रकार
जीवन के चित्रकार

तुमने ही रचा मुझे — चित्र में,
तुमने ही मुझे चित्रभाषा दी
तुमने ही गढ़ा मुझे
तुमने ही मुझमें समन्दर भरा
तुमने ही मेरे समन्दर को आसमाँ दिया

तुमने ही खिलाए — नीले आसमाँ में नर्गिस के फूल
तुमने ही — जीवन का सुन्दरतम मुझ में भरा ।