हे  माधव  
तुमने  किया  
जीवन  को  पूर्ण   स्वीकार  
न  मोह  न  वितृष्णा 
न  प्रीत  न  घृणा 
निर्बाध  जीवन  के  साथ  बहे  तुम 
बिना   प्रतिरोध  राजी  हो कर  
गत  का  नहीं  शोक  कोई
स्वागत  किया हर आग़त का 
मथुरा  छोड़ी  सारा  यादव   कुल  था  बेचैन 
मुड-मुड  देखते थे 
युमना  के  कगारों  को 
गाव  की  गलियो को 
विह्वल  हो  नथुनों  में  भरना चाहते  थे 
सुगंधा माटी  की  सोंध 
पर  तुम  सदा  वही देखते  रहे  जो  सामने  था 
न  सिंहावलोकन 
 न  विहंगावलोकन  
केवल अवलोकन   
जब  दुर्योधन  ने सेना मांगी 
तुमने दे दी अनासक्त  भाव से 
स्वयं अपनी  ही सेना के
विरुद्ध  सारथी बने रहे 
निहत्थे   
तुमने जीवन  को 
पवित्र माना
और एक खेल भी
जहाँ  जीवन मात्र एक लीला बन जाये 
हे लीलाधर 
तुमने बताया 
लीला एक सातत्य है  और 
जीवन के प्रति कटु गंभीरता की नियति 
विलोपन और विस्तृति के सिवा कुछ नहीं है