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समय-चक्र / योगेन्द्र दत्त शर्मा

टूटे रथ, अश्व थके
छूट गईं वलाएं!

धुंध के सिवानों को
लौट गई पगडंडी
शेष रही एक थकन
एक यातना ठंडी

एक जलन, एक चुभन
छोड़ गईं यात्राएं!

मंगल-ध्वनि, शंखनाद
तोरण, बंदनवारें
ज्योति-कलश, रक्त-तिलक
सिन्दूरी मनुहारें

आहत सब दृश्य हुए
टूट गिरीं उल्काएं!

बीते संदर्भ सभी
अलगोजा, इकतारा
ओझल वे राम-धुनें
चंदन-तन गलियारा

पारे में बदल गईं
इस्पाती आस्थाएं!