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समय-रथ / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

1.
सुवह आई
कलियों ने खोल दीं
बंद पलकें

2.
खोल घूँघट
सहसा मुस्करायी
प्रकृति वधु

3.
लुटाने लगे
मतवाले भ्रमर
प्रेम- पयोधि
4.
उतरी धूप
खुशियाँ बिखराते
खिला आँगन

5.
सजने लगे
ऊँची टहनी पर
अनेक स्वप्न

6.
तितली उड़ी
बालमन में सजे
सपने कई

7. नहीं टूटते
अपनत्व के तार
आखिर यूँ ही

8.
कटे जब से
हरे भरे जंगल
उगीं बाधाएँ

9.
मुस्कानें कहाँ
शहरों के अंदर
कोलाहल है

10.
नहीं लौटता
उन्हीं लकीरों पर
समय-रथ