अवनी ने
न समझा अम्बर को
अम्बर न जान सका
अवनी को
अम्बर ने तब समझा
जब फूटा लावा
बहा, पिघला
सुप्त, कुंठित दर्द
अवनी ने तब समझा
जब पीड़ा के
काले मेघों ने
धरती को किया
आँसुओं से
आप्लावित
धरा-गगन जो
दूर हुए
समझे तब
जब
दोनों के दुख
एक हुए
नासमझी का
हुआ सुखान्त
मिलकर एक हुआ
सीमान्त !