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समय का शीशा / केदारनाथ अग्रवाल

समय का शीशा
चमकता रहा तमाम रात बिजली का
शक्ल अपनी
देखता रहा वयोवृद्ध पेड़ इमली का
सामने खड़ा,
दुनिया देखते-देखते हो गया बड़ा,
झेलते-झेलते कष्ट-पर-कष्ट दिन रात
नहीं उखड़ा
सोचते-सोचते सोच में पड़ा,
जिंदगी जीने का रहस्य खोजता रहा

रचनाकाल: ३१-०८-१९७०