Last modified on 22 मई 2009, at 20:33

समय का शोर / हिमांशु पाण्डेय

 
 
जब ध्वनि असीम होकर सम्मुख हो
तो कान बंद कर लेना बुद्धिमानी नहीं
जो ध्वनि का सत्य है
वह असीम ही है ।

चलोगे तो पग ध्वनि भी निकलेगी
अपनी पगध्वनि काल की निस्तब्धता में सुनो
समय का शोर
तुम्हारी पगध्वनि का क्रूर आलोचक होगा।