रमाशंकर यादव 'विद्रोही' के प्रति
अराजक-सा दिखने वाला वह शख़्स
चलता-फिरता बम है
जिस दिन फटेगा
पूरी दुनिया दहल जाएगी ।
कितना यूरेनियम भरा है उसके भीतर
उसे ख़ुद भी नही पता है ।
उसके पत्थर जैसे कठोर हाथ
छेनी-हथौड़ी की तरह
दिन-रात चलते रहते हैं
बेहतर कल की तामीर के वास्ते ।
उसके चेहरे पर उग आया है
अपने समय का बीहड़ बियावान ।
अनवरत चलते रहने वाले
फटी बिवाइयों वाले उसके पाँव
किसी देवता से अधिक पवित्र हैं
वह बीच चौराहे पर
सरेआम व्यवस्था को ललकारता है
पर व्यवस्था उसका कुछ नहीं
बिगाड़ पाती
तभी तो वह सोचता है
कि वह कितना टेरिबुल हो गया है ।
तभी तो वह
बडे आत्मविश्वास के साथ कहता है
कि मसीहाई में उसका
कोई यक़ीन ही नहीं है
और ना मैं मानता हूँ
कि कोई मुझ से बड़ा है ।
वह ऊर्जा का भरा-पूरा पावर-हाउस है
जिससे ऊर्जावान है
पूरी एक पीढ़ी ।
बच्चों जैसी उसकी मासूम आँखों में
पूरा एक समन्दर इठलाता है
और हृदय में भरी गहरी संवेदनाओं के साथ
जब वह हुँकारता है
तो समय भी ठहर कर सुनता है उसे
क्योंकि वह न सिर्फ़
अपने समय की आवाज़ है
बल्कि भविष्य का आगाज़ भी है ।