समय की लड़की
कुछ बोलती नहीं
उसकी मुस्कान के अन्दर
उबल पड़ता है आक्रोश
समय की लड़की
हवा में छोड़ देती है
लटकते शब्दों को
ढूंढती रहती है हर जगह
खामोश नजरों से
कब्रिस्तान में तब्दील हुई
अपनी हँसी
जब-जब कविता बदलती है
समय की लड़की के भी
प्रतिमान बदल जाते हैं
नए प्रतिमानों से किया जाता है
उसका मूल्यांकन
क्रूरतम क्रूरता की दस्ताने
लिखता है दर्द रात होने तक
कष्ट सहने के बाद
पेड़ से चिपक कर
रोती हैं खामोशियाँ
गूंगे-बहरे प्रश्नों में लिपटे सवाल
भीतर ही भीतर
गुन लेते हैं एक मौन प्रसव
समय की लड़की लिखती है
सारा की ख़ुदकुशी का राज
वह दबोच लेती है शब्दों को
कविताओं में बिखरे हुए प्रेम के रंग
खारिज कर देती है
बिम्बों के साथ