Last modified on 19 अगस्त 2020, at 16:51

समय गुज़रना है बहुत / विजयशंकर चतुर्वेदी

अभी बहुत गुज़रना है समय
दसों दिशाओं को रहना है यथावत
खनिज और तेल भरी पृथ्वी
घूमती रहनी है बहुत दिनों तक
वनस्पतियों में बची रहनी हैं औषधियाँ
चिरई-चुनगुन लौटते रहने हैं घोसलों में हर शाम
परियाँ आती रहनी हैं बेख़ौफ़ हमारे सपनों में ।

बहुत हुआ तो क़िस्से-कहानियों में घुसे रहेंगे सम्राट
पर उनका रक्तपात रहना है सनद
और वक़्त पर हमारे काम आना है
बहुत गुज़रना है समय अभी ।