फिर नया आवाह्न हुआ
जीवन का देखो संचार हुआ
वृक्ष पर नैसर्गिक निर्बाध शृंगार हुआ
ठीक वैसे ही जैसे
हमारा जीवन
हमारे सपनों को बनाता
लक्ष्यों को सहेजता
संभालता चला जाता हैं
टूटते, बनते, बिखरते, सिमटते
और फिर से बनते
रिश्तों का चक्र चलता रहता है
नैसर्गिक, अनवरत, अविरल, अविराम...