एहि तरहें चुप नहि रहै दिन कहियो
निस्तब्धता एहन त’ कहियो ने रहै कि
नवगछुलीक ठाढ़ि सभक आपसी कनफुसकी
एना भ’ क’ सुनबामे आबै
सूर्यसँ भटल सोन
हरियर-हरियर पात पर एतेक भारी होइक
एहन त’ नहि रहै दिन कहियो
साँझमे शुरू भेल अद्भुत हवा
रातुक साँस बन्न कएने छैक, आ
बाजक पाँखितर दबल दिन कें आब
जरैत रहबाक साहस नहि बँचलै। एहि
अद्भुत परिस्थिति आ अग्निमय अस्थिरतामे
बड़ सम्हारिक’ डेग उठाबक बेगरता छैक कि
घास पर पसरल सोन टूटि ने जाइक
नवगछुलीक आपसी संवाद भंग ने भ’ जाइक।