कुछ अजीब सी स्थिति हो गयी पैदा
समय से पूर्व ही मैं पहुँच गया...
रंगमंच अभी सज-धज ही रहा था
कुर्सियाँ सजाते फटेहाल अवस्था में
दो मज़दूर वातावरण पर अभी चादर डाल ही रहे थे
अभिनेतागणों की अठखेलियां
उनकी शिकायतें, उनकी शरारतों की आवाज़
नेपथ्य से (जो खुद अभी बन ही रहा था)
साफ़ तौर से आ रही थी
कुछ उनमे से दौड़ते-भागते रंगमंच पर आ
सीटियाँ बजा वापस चले जाते थे
कुछ अभिनेत्रियाँ भीनी-भीनी रोशनी में
चेहरा दिखा स्टेज पर बाएँ-दाएँ कर रही थीं
किसी भव्य महल का दृश्य तैयार हो रहा था
आदमकद शीशे कमरे के कोने में सजाए जा रहे थे
बल्ब की रौशनी जला-बुझा कर टेस्ट की जा रही थी
माइक पर 'टेस्टिंग-टेस्टिंग' की गूँज
अभिनय की दुनिया के परे पहुँच रही थी
मेरे आगमन से अनजान ...
लेकिन मैं भी समय से पहले पहुँचा
विचार की भांति
ढीठ बन खड़ा रहा
और सच मानो
पीछे से समय दौड़ता, हाँफ़ता, काँपता
मेरे पास पहुँचा
और मेरे बैठने का इंतज़ाम करने लगा
कोलाहल-सा मच गया
भागमभागी, अफ़रातफरी, उठका-पटकी में
उस हाँफते, काँपते हुए-से परछाई को देख
मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था
अजीब ही विडंबना थी उसकी
जिसकी आदत रही है सबसे पहले प्रस्फुटित होने की
जिसने जाना नहीं
स्वागत कैसे किया जाता है
आगंतुकों का...
'साक्षी भारत', २००६