Last modified on 8 अगस्त 2008, at 21:30

समवेत / महेन्द्र भटनागर

संगीत-सहायिनी
सुकण्ठी

जीवन की तृष्णा को
गा !

सप्त-सुरों से
स्पन्दित हो
अग-जग,
संगीतक बन जाये
सूना मग !

ला —
सुरबहार-वीणा-मृदंग
विविध वाद्य ला
बजा,
सुकण्ठी गा !
जीवन की तृष्णा को
गा !