Last modified on 9 मार्च 2009, at 06:04

समागम / कैलाश वाजपेयी


सभी कुछ बदलता है
      अपनी रफ़्तार से
सिर्फ़ नदी ही नहीं
पहाड़ भी
चूर-चूर हो कर बहता है
नीचे
नदी की छाती से लगा हुआ.