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समाजवाद / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
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समाजवाद ने
क्या खड़ा किया?
गर व्यक्तिवाद
गिराया ही नहीं?
मछली पक भी जाए
औ’ जिन्दा भी रहे?