बहुत समझदार हो तुम!
जब कभी
उदासी का आँचल ओढ़कर
जवान होने लगता है
मेरा कोई दर्द
तो चुपचाप
बिना किसी शोर-शराबे के
कंधा देकर
…पहुँचा आते हो उसे
वहाँ
…जहाँ से लौट नहीं पाया कोई
आज तक!
बहुत समझदार हो तुम!
जब कभी
उदासी का आँचल ओढ़कर
जवान होने लगता है
मेरा कोई दर्द
तो चुपचाप
बिना किसी शोर-शराबे के
कंधा देकर
…पहुँचा आते हो उसे
वहाँ
…जहाँ से लौट नहीं पाया कोई
आज तक!