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समाधि-लेख / महेन्द्र भटनागर

कोई नहीं है तुम्हारे लिए

कोई नहीं है किसी के लिए,

दुनिया निरी ख़ुदग़रज़ है !


मरण पर हमारे --

कोई विकल बन

करुण गीत गाये

व आँसू बहाये,

मधुर याद में

(ज़िन्दगी भर !)

सजल प्राण-दीपक जलाये,

यह सोचना --

एक खाली मरज़ है !

दुनिया बड़ी ख़ुदग़रज़ है !


स्वयं को न दें

व्यर्थ

इतनी महत्ता,

समझ लें

उचित

भ्रम-रहित हो

स्व-अस्तित्व की

अर्थवत्ता,

इसमें नहीं कुछ हरज़ है !

जब कि

दुनिया निपट ख़ुदग़रज़ है !