Last modified on 12 अगस्त 2008, at 20:46

समाप्त / स्नेहमयी चौधरी

पहले कुछ दिनों तक चाहा--

दूसरों के हिसाब से करूँ,

फिर

कुछ दिनों तक चाहा--

अपने हिसाब से करूँ।

अब

कोई भी चाह

क्यों करूँ !