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समुद्र-मंथन / परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी

मुद्र-मंथन करलकै के ?
अमृत मिललै केकरा ?
जे सामर्थवान छेलै
जे लक्ष्मीवान छेलै
ओकरैह लक्ष्मी मिललै
बांकी केॅ मिललै परेशानी
दुख-दरदोॅ के कहानी
मेहनतनामा में बेचारा केॅ मिललै
समुद्रोॅ के फटकार
जीव-जन्तुवोॅ के आह !
ओह ! छी ! छी ! हाय ! हाय !
आरो आँखि में लोर !
जों आँसू केॅ पहचानै वाला
आशुतोष भगवान शिव तखनी नै ऐतियै तेॅ
कत्तेॅ जीव-जन्तु
विषोॅ सें जली जैतियै ।
समुद्र-मंथन/युग-युग में भेलोॅ छै
होते रहतै/विष निकलतेॅ रहतै
लेकिन अफसोस येॅहेॅ छै कि
आय विष पीयै वाला
त्यागी, उदार, उपकारी
कोय नै आगू आवी रहलोॅ छै
यै लेॅ केॅ सारा संसार विषमय भै गेलोॅ छै
विश्व-मानवता आसरा लगैलोॅ छै
एक शिव के ओर !