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समुद्र-3 / पंकज परिमल

नदी को बेशक
समुद्र तक ही जाना हो
पर उसे इतनी तो आजादी है ही
कि वह रास्ता बदल ले
पुराने तटों को छोड़कर
नए तटबंध बना ले
या किसी विरोधी स्वभाव की नदी से भी
गठजोड़ कर ले
समुद्र को तो
सब तरह की व सब दिशाओं की
नदियों की बदमाशियां
सहन करनी ही हैं
नदियों को यह भी आजादी थी
कि वे धारा सोखकर
संन्यास लेकर भूमिगत हो जाएं
और समुद्र तक न जाएं
समुद्र को तो भूमिगत होने की भी
आजादी नहीं थी
मरने की भी नहीं
प्रोटोकाल की लंबी-चौड़ी व्यवस्था थी
यह सुनिश्चित करने के लिए
कि उसे एक छींक के बाद
दूसरी छींक भी न आए
नदियां
और नदियों ने जो पाल रखे थे
कछुए, मगरमच्छ
और समुद्र के पानी में होती थीं स्वभावत:
बड़ी-बड़ी व्हेलें और दरियाई घोड़े
समुद्र को इन सबकी
धमाचौकड़ियों और स्वच्छंद आचरण के लिए
गरिमा के साथ चुपचाप रहना ही है