1
हम सम्पादक हम सम्पादक।
चुट्टा सँ पकड़ि पकड़ि लाबी
हम यत्रा तत्र जे किछु पाबी।
फल्लाँक उदय फल्लाँक मरण
नित ढेर लगाबी संवादक॥
हम सम्पादक॥
2
आबथि कवि वा क्यौ कलाकर
हम बन्द करी सबहक बकार।
एमहर ओमहर नहि घुसुकि सकथि
आचार्य स्वयं छी बकवादक॥
हम सम्पादक॥
3
साहित्य पढ़ल किछु कमे बेस
व्याकरणक तँ ऽ अछि मात्र लेश।
आबथि तथापि पहिने हमरे
लग ग्रन्थकार ओ अनुवादक॥
हम सम्पादक॥
4
हम वातावरण बूझि प्रान्तक
आश्वासक बनी सदा श्रान्तक।
पुड़िए भरि मे बड़को माँतथि
हम छी पदार्थ तेहने मादक
हम सम्पादक॥
5
अछि हमर मनोरम आत्माकथा,
हम ‘‘ननु नच किंवा यथातथा’’
जे किछु लिखैत छी थीक बुझू,
सब फल सरकारी परसादक॥