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सम्बोधन-एक / तुलसी रमण

खिलता बुराँस
महकता कूजा

हवा में ठरता
पसारता धूप में

चाँदनी में खेलता

काँसे की कटोरी -सा
                खनकता

तुम्हारा प्यार.........

अक्तूबर 1987