Last modified on 7 मार्च 2010, at 01:44

सम्मोहन / अरविन्द चतुर्वेद

तुम्हारी हँसी देखी
और ख़ुद हँसना भूल गया
एक-एक बूँद आँसू में
मैं जैसे डूब गया
तुम्हारी एक हिचकी
फैल गई समूची रात पर
और चाँद उतर आया
धीरे से
मेरे हाथ पर।