ये अशोका के जवानों मुट्ठियों को बांध लो
ज़ुल्म के मैदान में, अब लड़ना एक साथ है......
है जमीं आवाज देती, मुश्किलों के दौर में
बेबसी में क्या करेगी, दासतां के सामने
ये जवानों बहुजनों का, आसमां बेहाल है
झुक रहा है आज कैसे, दुश्मनों के सामने
है बुलंदी पर जो अपना, झण्डा न गिरने पाये
इस घड़ी में जंग मिलकर, लड़ना हमको आज है...
ज़ुल्म के मैदान में, अब लड़ना एक साथ है... ये अशोका के जवानों...
देखो मांओं बहनों की, क्या हत्या बलात्कार है
दासता में कैसे गिरता, अपने सर का ताज है
भूख की गोली को खाके, जिन्दा कैसे रह गये
शोषण दमन की आग में, अब जल रहा भी खाक है
इस तरह से मिटता कुछ, इतिहास न रह जायेगा
खो गया सर से हमार, न रहा अब ताज है...
ज़ुल्म के मैदान में, अब लड़ना एक साथ है... ये अशोका के जवानों...
क्षेत्रता व जातियों की, दूरियों को छोड़कर
ब्राह्मणी मतभेद को, पैरों के नीचे रौंदकर
एकता से बढ़के अच्छा, है कोई मौसम नहीं
आवो मिलकर छीन लें, अपने किले को दौड़कर
सदियों से हारे नहीं, फिर जंग हम हारेंगे क्या
अपने पुर्खों की लड़ाई, का हुनर जो साथ है...
ज़ुल्म के मैदान में, अब लड़ना एक साथ है... ये अशोका के जवानों...