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सरकंडे / केशव

मदारी की तरह डुगडुगी बजाकर
हाथों में थामे
भविष्य के आईने में
दिखाना चाहते हो मुझे
पंखोंमढ़ा आकाश
कंकड़ों को
अनाज के दाने में
और तलवार को
फूल में बदल देने का चमत्कार

तुमने यह कैसे समझ लिया
कि तुम्हारे ईश्वर को कंधों पर बिठाये
देखता ही रहूँगा
मैं यह कमाल

कभी सूखा-राहत
कभी बाढ़-सहायता के
रंग-बिरंगे पोस्टर छपवाकर
अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में
भुना चुके हो खूब
मेरा नाम

भोजपत्र पर लिखी इबारतों की
मोमबत्तियाँ जलाकर
दूर करना चाहते हो अंधकार
ईश्वर को टाँककर
बटन की तरह मेरे तार-तार कुर्ते पर
मेरी आवाज़ को काटना चाहते हो
पाप-पुण्य के दाँत से

नहीं बूढ़े सहयात्री!
तुम्हारी इन साजिशों को फलने के लिये
नहीं मिलेगी अब
मेरी भूमि से खाद

मेरी भाषा को नहीं बुझा सकती
तुम्हारी तमाम-तमाम
दमकलों की फौज
चाहे एक दिन में करो
बीस-बीस नलकूपों का उदघाटन
अपनी आस्था में नहीं बोऊंगा
भाषणों के सरकंडे

क्या ज़रूरत है तुम्हारी आवाज़ पर
पत्थर फेंकने की
पुरानी कब्र की तरह
वह खुद ही है
ढहने को तैयार

मेरे युग का वृक्ष
तुम्हारे अंदर
धीरे-धीरे हो रहा है घना
उसकी छाया से
घबराये हुए सियार की तरह
भागने लगोगे अपने नंगे वृक्ष की ओर.