Last modified on 24 जनवरी 2021, at 19:28

सरसों खिले( मुक्तक) / कविता भट्ट

भूखे को रोटी मिले, प्यासे को पानी मिले।
ठूँठ हो चुके जो पेड़, उन्हें भी जवानी मिले।
विनती है यही ओ प्रभु! हो जाए जीवन वसन्त।
दिलों में बारूद नहीं, गुलाल हो,सरसों खिले।