श्वेत वस्त्र धारिणी हे शुभ्र हंस वाहिनी माँ,
वीणापाणि आ के आप उर में विराजिये।
सा रे ग म प ध नि सा, सा नि ध प म ग रे सा,
सप्त स्वर सप्त चक्र पे ही आ के साधिये।
षट् दोष दूर कर शुद्ध कीजिए ह्रदय,
सत्य शिव सुन्दर का मूल साज साजिए।
अनहद नाद के आरोह-अवरोह में ही,
मन रहे मुग्ध मातु इस भाँति बाँधिए।