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सरस्वती वन्दना / जटाधर दुबे

दया करोॅ हे अमर ज्ञान केॅ निर्झरणी,
मुग्ध करोॅ जगती केॅ वीणावादिनी।

मैया, सुत पर तोंय कृपा करोॅ, उबारी देॅ
नया शक्ति देॅ, हमरोॅ क़लम करारी देॅ,
नया भाव से हमरोॅ हृदय सुधारी देॅ
तोरोॅ चरणोॅ में, हमरोॅ भक्ति संवारी देॅ।

गीतोॅ के पंखुड़ी सजेॅ, माय सन्मति देॅ
हमरोॅ मन में ज्ञान-ध्यान के ज्योति देॅ,
तोरोॅ भक्ति में रहौं सदा, जग-प्रीति देॅ
दुष्ट, अनिष्ट मिटावै केॅ भी शक्ति देॅ।

विश्वप्रिया, वरदायिनी माय आशीष दहोॅ
ज्ञान किरण सेॅ सौसे जगती केॅ भरिहोॅ,
कोयल केॅ स्वर दै वाली नव राग दहोॅ
जहाँ न्याय नै वहाँ हृदय में आग दहोॅ।

मलका मलकेॅ नया, प्रकाश नया फैलेॅ
वीणा केॅ तारोॅ सेॅ हँसी नया फैलेॅ,
दुखी अशक्त मनोॅ में आशा नया खिलेॅ
आपस के विद्वेष मिटेॅ, अपराध जलेॅ।

पापोॅ सेॅ भरलोॅ छै हृदय, क्षमा करि देॅ,
अंधकार में डुबलोॅ धरनि, शमा भरि देॅ।