Last modified on 23 अगस्त 2023, at 03:22

सरायन / राकेश कुमार पटेल

अरी सरायन !
मेरी प्यारी नन्ही-सी नदी
वर्षों बाद तुझे देखा आज फिर
और दिल भर आया

तेरे किनारे बैठकर
तुझे नदी समझकर
कुछ पानी-सा ढूँढ़ रहा था मैं
और तू ज़ोरों से रो पड़ी

तेरे काले आँसू छलछलाकर
धीरे से ढुलक पड़े ।
किसानों ने जोत डाला
तुझे खेत बनाकर

शहर वालों ने उड़ेल दिया है
सारी गंदगी और ज़हर तुझमें
अब तुझे मरने से कौन रोक सकता है
मेरी नन्ही-सी प्यारी-सी नदी !