छोड़ो चद्दर और रजाई
स्वेटर कोट जुराबें भाई,
मन हर्षाता फागुन आया
सर्दी लेने लगी विदाई।
मोटे कम्बल को सोने दो
मफलर टोपे को रहने दो,
कोहरे की चादर अलसाई
सर्दी लेने लगी विदाई।
धूप कुनकुनी अभी सुहाती
नहीं किसी का तन झुलसाती,
किट-किट बजते रहने वाले
दांतो की सरगम शरमाई।
फागुन का रंग ज्यों गहराए
त्यो ठंडक पीछे रह जाए,
सूरज की किरणें मुस्काई
सर्दी लेने लगी विदाई।