कितनी सारी कलियों में
खिलता है सूनापन
कितनी सारी पाँखों में
भरता उड़ान
कितने सारे नक्षत्रों में
होता भासित
कितने सारे सौरमंडलों में
करता अपनी परिक्रमा
न होना
कितने सारे होने को
करता सम्भव
कितने सारे जीवन में
जीती है मृत्यु
कितनी सारी संज्ञाओं में
ज्ञापित है
सर्वनाम वह!