जो चुभती हैं तुम्हें
वो निगाहें नहीं हैं लोगों की
वो सलवटें हैं
मेरे बिस्तर की
जो बन जाती हैं
अकसर
रात भर करवटें
बदलते हुए।
जो चुभती हैं तुम्हें
वो निगाहें नहीं हैं लोगों की
वो सलवटें हैं
मेरे बिस्तर की
जो बन जाती हैं
अकसर
रात भर करवटें
बदलते हुए।