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सवालों का बोझ / गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल'


तुम उन सवालों का बोझ
अपने मानस पर लाद के
कब तक कहां तक
बस चलती रहोगी
मेरी तरह कब तक एक बार भी
व्यक्त न कर करोगी..?
सोचता हूं..
बहुत दृढ़ हो
पाषाण की तरह
पर जब छूता हूं तुम्हारे मनको
तो नर्म मखमली एहसासों को
महसूस करता हूं...
देर तक बहुत दूर तक
तुम
वाक़ई एक
रेशमी एहसासों की मंजूषा सी
अक्सर रहती हो मेरे साथ..!!
अनकही अनाभिव्यक्त प्रेम कथा
की नायिका
 क्यों..नहीं कह पाता हूं
दूर हो जाओ मुझसे..?