शहर-दर-शहर हम घूमते रहे
कई तरह के लोग मिले
कोई अपनों सा
कोई परायों की तरह
हरेक का विचार मिलता सा
पर रूप अलग सा
एक दूसरे से मनमुटाव की स्थिति में रहकर
हर कोई एक दूसरे से दूर
उस दूरी तक
जहां न पहुंचे कवि नहीं रवि न चांदनी
एक पागल ही पहुंच पाता है
हर लब से एक प्रश्न उठता है
लोकतंत्र की परिभाषा क्या है ?
क्योंकि आज की स्थिति में
हर परिभाषा गलत सिद्ध हो रही है
लब पर मैं भी सवाल लिए
फिर रहा हूं
हर स्तर के लोगों से मिलता
सभी पुस्तकीय अर्थ ही बताते
जो इस देश की सार्थकता नहीं
जिस की यह परिभाषा नहीं
कोई और है कोई और है …