सवाल / वीरेन्द्र नारायण पाण्डेय

राह में मिलला पर
सभे रोज पूछेला एकेगो सवाल
‘कइसन बा हाल-चाल ?’
बे-सोचले कहके कि ‘ठीके बा’
आगे बढ़ जाइले हाली दे।
भीड़ में भुला जाला
लोकाचार में पूछल सवाल
आ आँखिन में समा जाला
जलूस के धधकत मसाल।
हँगामा से बच निकले खातिर
जब पीछे मुड़ जाइले
राह घेर के खड़ा हो जाला
अनगिनित सवाल।
हमार चेहरा
चेहरन के भीड में भुला जाला
आ बे-सोचले, बे-चहले
आगे बढ़ के, थाम लिहिले
बगल से गुजरत जलूस के मसाल।

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