हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ससुर जी आगे सात प्रणाम
बहुअड़ नै भावैं फालसे जी राज
बागां री मेवा खाओ म्हारी बहुअड़
कोई बागां में नहीं फालसे जी राज
जेठ जी आगे सात प्रणाम
बहुअड़ नै भावैं फालसे जी राज
भैसड़ दूधा पीयो बहू म्हारी जी
अब नहीं रितु है फालसे जी राज
देवर जी आगे सात प्रणाम
भाभी नै भावैं फालसे जी राज
देस्यां भाभी! निंबुड़े चुखाये
कोई बागां में नहीं फालसे जी राज
राजा जी आगे सात प्रणाम
गोरी नै भावैं फालसे जी राज
पांच पियादे तो दस असवार
राजा जी चले बाग में जी राज
साथिड़े तोड़ै दाड़िम दाख जी
राजा जी तोड़ै फालसे जी राज
तोड़ ताड़ै कर बांधी चौपट पांड
जी कोई लाये महल में जी राज
खाओ सखियां खाओ घर की नार
बाकी के सइयां बांट दो जी राज
थम चिर जिओ ससुरा रे जी पूत
म्हारी भलीय पुजाई मन रली जी राज
थम चिर जिओ सजनिया री धीय
म्हारा बंस बधाया बाप का जी राज