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सहचर / कविता वाचक्नवी

सहचर

जब चलेंगे गाँव के
उस पार
दो पग
ठूँठ को घेरी दिशाएँ
झोलियों में कैद होकर
साथ देने चल पड़ेंगी
और सारे गिद्ध
डैनों
और पैने नाखुनों से
मील लंबे रास्तों तक
नोचने पीछे चलेंगे
हर नगर में, हर डगर में

हिंस्र पंजों के विकट
आतंक ताने
गाँव के सहचर, सखा बन
साथ होंगे।