Last modified on 24 मई 2012, at 22:29

सहमति / मनोज कुमार झा

अब इस जर्जर काया पर मत ख़र्च करो धन
एक दिन जाना ही है तो जो बच जाए, बचा लो
सड़क किनारे बिक रहा खेत ख़रीद लो उसको
मुझे भी साथ ले चलना, दो पैसा कम करवा दूँगा
अब मुझे जाने दो, जो बच रहा है बचा लो
    घर में एक-दो तो तुरत सहमत हुए
जो सहमे शुरू में, वे भी सहमत हुए
पड़ोसी भी सहमत हुए

सब आए श्राद्ध में
मुखिया, सरपंच, एम०एल०ए० का भी एक ख़ास आदमी
जय-जय हुई, सब ने माना कि अभी ही ख़रीदी थी ज़मीन इतनी मँहगी
और अभी ही ऐसा भव्य श्राद्ध !
                पराक्रम की बात है।