Last modified on 26 अगस्त 2017, at 13:08

सही समय / स्वाति मेलकानी

यही समय
वह सही समय है
जिसमें जीवन उग आता है।
आँख मिलाता है सूरज से
और चाँद की
चतुराई को भाँप रहा है।
शब्दों के सब अर्थ
अब नहीं छिप पाएँगें,
भाषाओं की मोटी गर्म रजाई में।
बाहर चलती लू
एक सुर में चीख रही है।
जाड़ों की
सब बर्फ पिघलती,
कोहरे की चादर उड़ती है।
नहीं
इन्हें मत समझो आँसू
आँखों को धोखा देती है बूँद ओस की
तेज दृष्टि से इन्हे ढूँढ लेना ही होगा।
इसी समय में
सही समय को मिलना होगा।