बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
साँकर कन्नफूल की लटकें।
दोई गालन में छुटकें।
कबहूँ हाल भुजन को लेतीं।
छूती गाल झपट कैं।
कमऊँ कमऊँ तो रूरकी रातीं,
कमऊँ होत दो फटकें
कमऊँ होय कानन कौ कुन्डल,
कमऊँ जाँय पलटकें।
ईसुर दुरें गरे लगवे खों।
साँप साँकरे अटके।