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साँझ सकारे / कुमार शिव

साँझ सकारे
अस्त, सूर्य के साथ हुए हम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !

ऐसे बिछुड़े
पुनर्मिलन फिर सम्भव कभी
नहीं हो पाया
यादों के जंगल में
किए रतजगे
कोई भोर न आया

नदी किनारे
लहरें देखीं, नयन हुए नम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !

कितने दिन बीते
जब हम पर
हरसिंगार के फूल झरे थे
बारिश में भीगे थे
बाँहों में हमने
 कचनार भरे थे

आँसू खारे
ढूँढ़ रहे हैं अपना उदगम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !