सुना है आजकल शहर में
साँप ही साँप
बसने लगे हैं।
आओ चले चलें
गाँव के बीच से होते हुए अंतिम
छोर से गुजरते हुए
जंगल की ओर
जहाँ
एक सदन / एक कुटिया / एक मचान
बनाएँ।
वन काट कर खेत रोपें
नए सिरे से एक बरगद उगाएँ
जिसकी छाया में
अपने चेहरे से फूटते
पसीने सुखाने को बैठ पाएँ।
एक पीपल, एक अशोक और एक आम भी
अंकुरित करें, गहरी नींद सोने को।
किन्तु वहाँ बसने वाले
केवल हम हों और
आकार घर बसाए
अपनी बहन शांति
तथा भाई बंधुत्व
बीच में एक पुतला लगाएँ
जिस पर लिख दें
न्याय!