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साँप रबड़ के / योगेन्द्र दत्त शर्मा

अरे सपेरे
बड़े सवेरे
लाया कैसे साँप,
इन्हें देखकर
थर-थर, थर-थर
रहा कलेजा काँ!

सुन रे बच्चे
सीधे-सच्चे
डरना है बेकार,
भोले-भाले
साँप निराले
सिर्फ चाहते प्यार!

अरे सपेरे
बता मुझे रे
आखिर क्या है बात,
नहीं डरूँ मैं
प्यार करूँ मैं
मेरी कहाँ बिसात?
सुन रे भैया
ये नचकैया
सीधे-सादे साँप,
हरदम हँसते
कभी न डसते
लेते हैं मुँह ढाँप!

अरे सपेरे
तू क्यों मेरे
उड़ा रहा है होश,
सब डर भूलूँ
इनको छ लूँ
दिला रहा तू जोश!

सुन रे भाई
समझ न आई
क्या तुझको यह बात?
ये न काटते
सिर्फ चाटते
टूट गए सब दाँत!

अरे सपेरे
क्यों हैं तेरे
सिर पर भूत सवार,
हँसी-ठिठोली
काफी हो ली
अब आगे जा, यार!

ओ रे चुनमुन
बात जरा सुन
कर ले अब तू मेल,
साँप रबड़ के
आगे बढ़ के
इनसे खुलकर खेल!