Last modified on 4 अगस्त 2018, at 14:05

सांकल की तरह / प्रभात कुमार सिन्हा

आज आद्रा की विदाई है
आषाढ़ की पहली झड़ी का इन्तजार है
वयस्कों को दालपूड़ी खीर आम मिलेंगे आज
बच्चों को धारोष्ण दूध
आज कौन-कौन से ग्रह आँख मिलाएंगे
ज्योतिष भी नहीं जानते
मालिक के दरवाजे के मोखे से सटीं
बैठी हैं कृषकों की स्त्रियाँ
बस एक-दो दालपूड़ी और
बच्चों के लिये फीके दूध के लिये याचिका बनीं
बैठी हैं भूमिहीन कृषकों की स्त्रियाँ
आज दालपूड़ी-खीर और ऊपर से आम खा लेने से
पुरुषों की उम्र बढ़ती है
उफ्! कितना कठिन है मिलना आँटा दाल दूध
पत्थर हृदय के भकोस लेने के बाद ही
मयस्सर होंगे दालपूड़ी फीके स्वाद का खीर
कितना अलग-अलग ब॓ट गया है जीवन का संगीत
आनन्द का संगीत झंकार के साथ
बजता है मोटी चहारदीवारी के अन्दर
निरुपाय और हताश ज़िन्दगी का मूक संगीत
किसान के अनन्त सपनों को खंगालता है
पसलियों में चुपचाप संगीत झनझनाता रहता है
एक बलवान ऐंठन के साथ अंगड़ाई उठती जा रही है
वे मोटी चहारदीवारों को ईंटों सहित
बजाना चाहते हैं सांकल की तरह
आज आद्रा की विदाई है।