साईं तहां न जाइये जहां न आपु सुहाय
वर्ण विषै जाने नहीं, गदहा दाखै खाय
गदहा दाखै खाय गऊ पर दृष्टि लगावै
सभा बैठि मुसकयाय यही सब नृप को भावै
कह गिरिधर कविराय सुनो रे मेरे भाई
जहां न करिये बास तुरत उठि अईये साईं
साईं तहां न जाइये जहां न आपु सुहाय
वर्ण विषै जाने नहीं, गदहा दाखै खाय
गदहा दाखै खाय गऊ पर दृष्टि लगावै
सभा बैठि मुसकयाय यही सब नृप को भावै
कह गिरिधर कविराय सुनो रे मेरे भाई
जहां न करिये बास तुरत उठि अईये साईं