साक़ी, ईश्वर है करुणाकर,
उसकी कृपा अपार क्षमामय;
दुष्कृत से फिर तू क्यों वंचित,
सब के लिए समान सुरालय!
दान पुण्य फल यदि करुणांचल,
न्याय दया में तब क्या अंतर?
छोड़ कलुष भय, हो निः संशय,
पाप दया सहचर हैं निश्वय!
साक़ी, ईश्वर है करुणाकर,
उसकी कृपा अपार क्षमामय;
दुष्कृत से फिर तू क्यों वंचित,
सब के लिए समान सुरालय!
दान पुण्य फल यदि करुणांचल,
न्याय दया में तब क्या अंतर?
छोड़ कलुष भय, हो निः संशय,
पाप दया सहचर हैं निश्वय!