पृथ्वी:
विराट पुरुष की आंख से
अनन्त शून्य में जो ढुलकी
चीरती हुई-
अंतरिक्ष की उदासीनता
और फिर जम गई
आंसू की वह बूंद
क्या सोचा था उसने?
उस विराट पुरुष ने?
या हुआ था उसका साक्षात्कार
सृजन की पीड़ा से
क्या पता?
पृथ्वी:
विराट पुरुष की आंख से
अनन्त शून्य में जो ढुलकी
चीरती हुई-
अंतरिक्ष की उदासीनता
और फिर जम गई
आंसू की वह बूंद
क्या सोचा था उसने?
उस विराट पुरुष ने?
या हुआ था उसका साक्षात्कार
सृजन की पीड़ा से
क्या पता?